हम तो सबको समझाएं,
मगर कोई हमें जब समझाए,
हम घबरा क्यों जाते हैं ?
उलझनें सबकी सुलझा कर,
हम ख़ुद उलझते जाते हैं.
है ज़िंदगी बड़ी या उसका दुख बड़ा,
जो समझ गया बस वही खड़ा,
बाक़ी सब टूटते जाते हैं.
है ख़ुद से बस यही शिकायत,
हम तो सबको समझाएं,
मगर कोई हमें जब समझाए,
हम घबरा क्यों जाते हैं ?
मगर कोई हमें जब समझाए,
हम घबरा क्यों जाते हैं ?
उलझनें सबकी सुलझा कर,
हम ख़ुद उलझते जाते हैं.
है ज़िंदगी बड़ी या उसका दुख बड़ा,
जो समझ गया बस वही खड़ा,
बाक़ी सब टूटते जाते हैं.
है ख़ुद से बस यही शिकायत,
हम तो सबको समझाएं,
मगर कोई हमें जब समझाए,
हम घबरा क्यों जाते हैं ?
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